शाबर मंत्र और यंत्र

Dr.R.B.Dhawan (Guruji), Multiple times awarded Best Astrologer with 33+ years of Astrological Experience.

वीडियो लिंक : – https://youtu.be/U4xrlJld7zA

भगवान राम के लिए कहा जाता है, कि ‘‘भगवान राम जिन प्राणियों का वध करते थे, उनकी जीवात्मा राम में लय हो जाती थी’’ अर्थात् उन्हें जीव के शरीर में निहित शक्ति के स्त्रोत का उपयोग सिद्ध था। इसी सन्दर्भ में एक लोकोक्ति भी है, कि- मनुष्य द्वारा जिस देवता की पूजा की जाती रही है, उसी लोक में मृत्यु के उपरान्त जीव को स्थान मिलता हैं।
इसके अनुरूप ही चार प्रकार के मोक्ष मार्ग बताए गए हैं। परन्तु इसके अलावा भी जीवात्मा के लिए रहने का स्थान है, और वह है, किसी जीवित मनुष्य के शरीर में लय हो जाना। क्या यह लय होना मोक्ष है? यह मोक्ष नहीं है, यह क्रिया कभी कभी जीवात्मा की इच्छा से और स्वतः ही होती है। इससे जीवित प्राणी के शरीर में अनेक विकार पैदा भी पैदा होते हैं।
दरअसल मृत आत्माओं के सूक्षम कोषों में भी एक शक्ति होती है। इस शक्ति का क्षय होने में काफी समय लगता है। मोक्ष न प्राप्त करने वाली आत्माओं अर्थात प्रेतों या पिशाचों का आधा जीवन लगभग बीस वर्ष के आसपास आंका जाता है।
इनके कोषों की शक्ति से ही सिद्धों के द्वारा कुछ जीवों की आत्मा सम्वर्धित की जाती है। सिद्धों की ऐसी साधनाओं और सम्बंधित मंत्रों के लिये, मूहर्त्त व शकुन का विचार करना होता है। यह सब साधक को सिद्ध होना आवश्यक है। इसको परखने के लिए काकणी और अकडम चक्र का प्रयोग किया जाता है। स्वप्न विचार से भी शकुनों को निश्चित किया जाता है, कि तंत्र साधक के लिए वह साधना सुफलदायक है या नहीं।
प्रत्येक मंत्र साधना के लिए मंत्र और शुभ मुहूर्त्त निश्चित करना होता है, उसी शुभ समय में वह पूजा की जा सकती है। साधना के समय होने वाले शकुन और अनुभव साधना की सफलता या रूकावट का संकेत देते हैं। इन साधनाओं में जो विधि मुख्य है- 1. पूजन 2. संकल्प 3. न्यास 4. जप 5. क्षमा याचना और 6. विसर्जन। इस साधना काल में आह्वाहनीय अग्नि साधक के शरीर में अनुभव होती है। साथ ही मंत्र के देवता का स्फुरण भी होता है। देवता की शक्ति शरीर में आवेषित होता है। ध्यान देवता पर फिर संकल्प पर केन्द्रित होता है। शरीर कमान की तरह तन जाता है, केवल काम्य कर्म का विचार ही रह जाता है, ध्यान की पराकाष्ठा होती है, और कुम्भक लग जाता है। उस समय जो विचार आता है, वह शून्य से स्थूल रूप धारण करके परालौकिक माध्यम से कार्य सम्पादित कराता है।
इस समय साधक पर मंत्र देवता का भाव आया होता है। प्रकृति में संकल्प के अनुकूल प्रतिक्रिया आरम्भ हो जाती है, इस अनुभव की स्मृति मस्तिष्क में लिखी जाती है। इसे ही देवी भागवत में ‘‘पुच्छभूत ब्रह्य स्वरूपिणी’’ कहा गया है।
इसी प्रकार साबर मंत्रों और साबर पद्धति का निर्माण हुआ। समय के साथ साथ यह विद्या विलुप्त हो गई है, केवल शेष रह गए हैं- 1. हंसाचार 2. सिद्धपीठ 3. शकुन और 4. साबर मंत्र और यंत्र। साबर मंत्र और यंत्र सिद्ध होने पर अलौकिक चमत्कार दिखाते हैं। इनमें पहले देवताओं की सिद्धि की जाती है। सिद्धि सिद्ध पीठों में की जाती है। हंसाचार इन साधनाओं की पृष्ठभूमि तैयार करता है, शकुन विचार के साथ इसके उपयोग से उस मुहूर्त्त का निश्चय किया जाता है, जब साधना साधक के लिए सफलता देने वाली होगी।

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